पहली हवाई यात्रा Lalit Rathod द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पहली हवाई यात्रा

मैं वर्तमान को खुलकर जीने और कल्पना को सच मानने में विश्वास करता हूँ. जब भी किसी यात्रा में जाता हूँ उस वर्तमान की ढेरों कल्पना करता हूँ, जिसे एक समय बाद मुझे जीना है. उस कल्पना में लंबे समय की उत्सुकता, अपनों की खुशिया और सूर्य की किरणों के बीच कॉफ़ी की तलब शामिल होती है.
उन दिनों मुंबई जाने वाली समरसता और मुंबई हावडा मेल ट्रेनों में सफ़र कर मन भर चुका था, कि दफ्तर से हवाई यात्रा में मुंबई जाने अवसर मिल गया...जानकर बेहद खुशी हुई पहली हवाई यात्रा मुफ्त में होगी। रातभर यही सोचता रहा, फ्लाइट में खिड़की वाली जगह नही मिलेगी तो मजा नही आएगा। खिड़की के सामने सेलिब्रिटी वाली फोटो भी नही आएगी जैसे लोग इंस्टाग्राम में डालते है, आई एम गो टू वगैरा-वगैरा...भारत में ट्रेन और बस में खिड़की पर रूमाल रख दो फिर आप शहर भ्रमण कर आ जाओ जगह आपकी आरक्षित रहेगी। पर फ्लाइट में यह परंम्परा नही चलती । देर रात सोने के बाद सुबह नौ बजे नींद खुली, 11 बजे फ्लाइट थी आयोजक ने कहा था दो घंठे का पहले एयरपाेर्ट सिर के बल पहुँच जइयो। सुबह टाईम देख चेहरे में बारह बजे हुए थे...एयरपोर्ट जाते समय रास्ते भर यही सोचता रहा.. अगर गार्ड ने कह दिया तुम्हारी फ्लाइट मिस हो चुकी है तो आज खुद को माफ नही कर पाउंगा।
एयरपोर्ट पहुँचते ही पहले पूछा मुंबई इंडिगो चली गई क्या...जवाब आया, अभी समय है सुनकर ऐसा लगा जैसे गंभीर हालत में पड़े व्यक्ति को संजीवनी मिल गई हो। बैठकर घर वालों को एयरपोर्ट का लाइव प्रसारण कराया..क्योकि परिवार का मै पहला सदस्य था जो फ्लाइट में पहली बार चढने जा रहा था। चिंता करती माँ कहने लगी बैठने से पहले भगवान का नाम जरूर ले लेना बेटा और सुनो प्लेन चालू होते खडकी से हाथ बहार न निकलना और कुछ भी हो जाए जगह से तो हटियो मत...माँ को लग रहा था जैसे मै हमारे गाँव जाने वाली न्यू राजधानी बस में मुंबई जा रहा हूँ.....

तभी एक ऐसे व्यक्ति से जिसे देखकर लगा वह हवाई जहाज की यात्रा करने का अच्छा अनुभवी रखता है, मैने सकुचाते हुए उससे पूछा क्यो भाई खिड़की वाली जगह हथियाने का क्या फंडा है? उसने कहा टिकट निकालते समय इसके लिए अतिरिक्त शुल्क देना होता है। तभी फ्लाईट के लिए सभी को बुलावा आया... मैं सोच रहा था अगर इस बार खिड़की वाली जगह नही मिली तो आते टाईम जरुर जुगाड़ करवा लूंगा। फ्लाईट के अंदर घुसते ही एयर होस्टेस ने कहा आपकी जगह C4 में है..मैने कहा यह कहां है? उसने इशारे से बताया की लास्ट लाइन में खिड़की वाली सीट आपकी है...उसकी खूबसूरती के साथ ही मधुर आवाज सुनकर दिल ऐसा गार्डन-गार्डन हो उठा, मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था ऐसा लगा जैसे मुझे जन्न्त मिल गई हो। आज भी एयर होस्टेस की अग्रेजी भाषा कानो में गूजती है। खैर...अगर पहले से पता होता कि आयोजक ने खिड़की वाली जगह बुक करवा रखी थी। तो पहली हवाई यात्रा के पहले की स्थिति इतनी कशमकश पू्र्ण न होती जो जीवन भर के लिए मेरे जहन में समा चुकी है।